1620-1720-1820-1920-2020
क्या 20 अंक अशुभ है?
मंजू गौड़
निदेशक , गौड़ ग्रुप
जिंदगी कभी इतनी स्थिर हो जाएगी ऐसा कभी नहीं सोचा था। अपने जीवनकाल में मैं ऐसा भी दिन देखूंगी जिसमे जिंदगी इतनी स्थिर हो जायेगी कि हम अपने अपने घरो में बंद हो जाएंगे , कही आएंगे जाएंगे नहीं, सिनेमा बंद , मॉल बंद , सड़कें खाली , मंदिर खाली और हर वो जगह खाली जंहा पहले सर से सर टकराते थे लेकिन आज सन्नाटा पसरा हुआ है अगर कोई जगह भरी हुई है तो वो है अस्पताल। बड़ा ही आश्चर्यजनक और मन में घुटन पैदा करने वाला समय चल रहा है सोच सोच कर ही डर लग रहा है। आज पूरा देश एक सन्नाटे में तब्दील हो चुका है। सड़को पर अगर कोई नजर आ रहा है तो वे हैं केवल प्रशासन के तथा जरुरी सेवाओं से जुड़े लोग।
प्रधानमंत्री जी द्वारा पूरे देश में 21 दिनों का लोकडाउन करना इस बात की ओर साफ़ इशारा करता है कि स्थिति वाकई में ख़राब है जिसका केवल एक ही हल है कि हम सभी सिर्फ घरों में रहें।
कभी कभी कुछ ऐसी फिल्में देखते थे जिसमे जनता अपने राजा से त्राहिमाम त्राहिमाम करती नजर आती थी और बोलती थी की हमे बचाओ हमे बचाओ ऐसी ही स्थिति प्रकट हो गयी है। आज पूरा विश्व अपने अपने भगवान् से ही प्रार्थना कर रहा है और सोच रहा है कि ऐसा क्यों हुआ ? क्या गलती है ? क्या हम इसके लिए जिम्मेदार है ? जिम्मेवार तो हम हैं.
मैं यही सोच रही हूँ कि ऐसा क्या हो गया है आखिर ? आज विज्ञान इतनी तरक्की कर चुका है , डब्लू एच् ओ भी है , तरह तरह की बिमारियों की खोज होती आ रही है , इतनी एडवांस बातें हम करते हैं , चाँद पर रहने की बातें हम करते हैं और ऐसे युग में महामारी। पहले कभी जब हम ऐसी बातें करते थे तो बड़ी हंसी आती थी कि हम कौन से युग की बातें कर रहे हैं लेकिन हमने अपने इसी जीवन में यह सब देख लिया।
यही सोचते हुए मैंने गूगल सर्च करने बैठी तो मैं देखकर हैरान हो गयी, बहुत ही आश्चर्यजनक बात थी और मैं सोचने लगी कि आखिर यह कैसे हो सकता है यानि यह कोई अभिशाप है। गूगल में देखा कि यह माहमारी सबसे पहले यूरोप में 1720 में आई जिसमें लाखों लोग मरे, उसके बाद 1820 में फिर 1920 में और अब यह 2020 में। यह माहमारी यूरोप में, फिर अमेरिका में उसके बाद फिर यूरोप में फिर थाइलैंड और इस बार चाइना।
हैरान करने वाली बात है कि हर सौ साल में इस माहमारी का आना यह आखिर कैसा संयोग है। सबसे बड़ी बात कि 2020 जिसमें पूरा विश्व इतनी तरक्की कर चुका है उसके बावजूद इस तरह की माहमारी जिसका अभी तक कोई तोड़ नहीं खोजा जा चुका। यानि यह कोई ईश्वर की लाठी है, प्रकृति की लाठी है जो बेअवाज है जो हमें समझनी चाहिए शायद हमने धरती माँ को इतना दुखी कर दिया है जो वह इतना कहर बरसा रही है। लेकिन अब भी वो हमें संभलने का मौका दे रही है। लेकिन क्या वो सौ साल तक अपने आप को रोक कर रखती है या यूं कहिए कि हमें मौका देती है कि शायद हम संभल जाएंगे , लेकिन हम नहीं संभलते और फिर वह अपनी बेअवाज लाठी को बरसाती है।
कितना मुश्किल जीवन लग रहा है । कभी नहीं सोचा था कि हम ऐसा जीवन जीएंगे इस तरह से घर में बंद हो जाएंगे और एक छींक ऐसी जानलेवा छींक हो जाएगी कि हमें अगले पल मृत्यु दिखाएगी। यह एक ऐसी बीमारी है जो इतनी टैक्नाॅलोजी के युग में भी सभी के समझ से बाहर है।
कितना मुश्किल जीवन लग रहा है । कभी नहीं सोचा था कि हम ऐसा जीवन जीएंगे इस तरह से घर में बंद हो जाएंगे और एक छींक ऐसी जानलेवा छींक हो जाएगी कि हमें अगले पल मृत्यु दिखाएगी। यह एक ऐसी बीमारी है जो इतनी टैक्नाॅलोजी के युग में भी सभी के समझ से बाहर है।
बहुत ही हैरानी वाली बात है कि जब भी यह महामारी आई है उसमें लाखों की संख्या में लोगों की जान गई है। 1720 में जहां इस महामारी से मरने वालों की संख्या लाखों में थी वहीं धीरे-धीरे इसने करोड़ों का आकड़ा पार किया। सोचने पर मजबूर हूं कि यह 20वां वर्ष ही ऐसा क्यों है, प्रकृति ने इस महामारी के लिए आखिर यह 20वां वर्ष ही क्यों चुना है यह अपने आप में सोचने वाली बात है। हमें इसके बारे में समझना होगा कि आखिर यह ऐसा कौन सा अभिशाप है जो इस धरती पर चला आ रहा है। ईश्वर शायद कुछ कहना चाहता है पर हर 100 साल बाद कहता है यह एक अजीब बात है।
हमें बहुत संभलना होगा। हम अपने जीवन में अंधाधुंध भागे जा रहे हैं न जाने किस दौड़ में भागे जा रहे हैं हमें कभी चैन नहीं है। कभी मंदिर जाते हैं तो मंदिरों में भीड़ है, सिनेमा जाते हैं तो वहां भीड़ है, माॅल जाते हैं तो वहां भी यही हाल है मैं भी इस दौड़ में शामिल हूं ऐसा नहीं कि मैं इसमें शामिल नहीं हूं। हम किसी विकेंड पर भी अपने घर पर रहना नहीं चाहते, हाॅटल में लंच और डिनर करना चाहते हैं, पार्टिज में जाना चाहते हैं इतना कुछ करते हैं और वह सभी कुछ एक क्षण में धरा का धरा रह गया। सारी योजनाएं बनी की बनी रह गई अब हम सब अपने-अपने घरों में बैठे हैं। अपने घर को देख रहे हैं परिवार के साथ बातें कर रहे हैं, एक साथ टीवी देख रहे हैं। कुछ पढ़-लिख रहे हैं, कुछ मेडीटेशन कर रहे हैं। न जाने अब हम क्या-क्या सोच रहे हैं और क्या-क्या कर रहे हैं। लेकिन यह पल बेहद दुखदायी है, जीवन में ऐसा कभी कुछ देखेंगे ऐसा हमने सोचा न था । लेकिन हमे इस समय को पूरी सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीना होगा ताकि हम समस्या का सामना डट कर कर सकें।
22 मार्च को मोदी जी के कहने पर पूरा देश अपने अपने घरो से बाहर निकल कर उन सभी लोगो का धन्यवाद किसी न किसी बर्तन, ताली या घंटी को बजाकर कर रहा था जो लोग अभी व्यवस्था में जुड़े हुए हैं और बिना अपनी परवाह किये देश की सेवा कर रहे हैं चाहे वह डॉक्टर हों , सिक्योरिटी से जुड़े लोग हों , पुलिस वाले हों , मीडिया कर्मी हों या साफ़ सफाई से जुड़े लोग। यह दृश्य देख कर मन विभोर हो उठा कि मुसीबत की इस घडी में पूरा देश एक साथ है और एक लय से अपने अपने घरो की बालकनी या दरवाजे से देश के प्रधानमंत्री की बात का मान रख रहा है। पूरी दुनिया ईश्वर की ओर आस भरी नजरों से देख रही है और पूछ रही है कि हे ईश्वर ये क्या हो गया? पूरे विश्व में किसी के समझ नहीं आ रहा है कि आखिर यह क्या और क्यों हो रहा है।
हमें यह नहीं पता था कि इस युग में हम इस तरह का कुछ देख कर जाएंगे तो यह अनुभव हमारे लिए कितना विचित्र होगा ? जब भी हम आगे भविष्य में बात करेंगे तो यह बात जरूर होगी कि हमने अपने जीवन में वैज्ञानिक युग में भी ऐसी भयानक महामारी को देखा जो कि बहुत बड़ी बात होगी। हमारे कैसे अनुभव रहे, हमने कैसे उस समय को पार किया । न जाने हम इस दौर से कैसे निकल पाएंगे यह हालांकि अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है।
कल मैं एक विडियों देख रही थी जिसमें एस्ट्रोलोजर, कुछ भविष्यवाणी करने वाले बात कर रहे थे कि मार्च में जब नवरात्रे शुरू होंगे तो थोड़ा-थोड़ा समय बदलना शुरू होगा। कुछ राहु और केतु की दशाए ऐसी हैं जो अभी यह सब चल रहा है इस दिशाकाल में यह सब बाते हो रही हैं और संयोग से इसी समय इस महामारी के लक्षण बन रहे हैं जो धरती पर कहर ढां रहे हैं।
एक विडियों में यह भी देखा कि लोग किस तरह घरों में बैठकर प्रार्थना कर रहे हैं बहुत से मंत्रों का जाप कर रहे हैं चूंकि मैं स्वयं भगवान में पूर्ण विश्वास रखती हूं इसलिए मैं जानती हूं कि ईश्वर की ईच्छा के आगे सब नतमस्तक है जैसा वे चाहेंगे वैसा ही होगा और उनसे अच्छा और बड़ा कोई कुछ नहीं कर सकता। लेकिन इस प्रार्थना में सभी यह कह रहे हैं कि सभी को मिलकर पोजीटिव बाते करनी चाहिए ताकि यह पोजीटिविटी ब्राहम्ण में जाए और सब कुछ अच्छा हो जाए। कोरोना वायरस के लिए हाय-हाय करने से अच्छा है कि सब पोजीटिव होकर इसके खत्म होने की बात करें, सब्र रखें और भगवान धनवंतरी जो कि स्वास्थ्य के देवता है उनका मंत्र पढ़े और उनसे प्रार्थना करें कि वे सभी को स्वस्थ रखें।
मंत्र
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरायेरू
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री अष्टचक्र नारायणाय नमः॥
यह कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि यह ईश्वर का ही किया हुआ एक कहर है जो हमें बर्दाश्त करना पड़ रहा है। अपना कर्म करने के साथ साथ हमें ईश्वर से भी प्रार्थना करके सबकुछ सही करना है । हम ईश्वर से अपनी गल्तियों की माफी मांगे और उन्हें भविष्य में न दोहराने की बात कहें। न जाने कितने घर-परिवार इससे नष्ट हो जाएंगे। कितने लोग इसमें अपनी जान गवां चुके हैं। देश की अर्थव्यवस्था डगमगा जाएगी। बिजनेस ठप्प हो रहे हैं लोग घरों में बैठे हैं, कामकाज बंद हो गए हैं आखिर कैसे दुनिया आगे बढ़ैगी। आज जो हम 21वीं सदी में खड़े हैं वो दुनिया कहां जानी जाएगी बहुत चिंता का विषय है। लेकिन इस समय जान से बढ़कर कुछ नहीं है। देश की अर्थव्यस्था को देश के प्रधानमंत्री से ज्यादा कोई और नहीं समझ सकता इसलिए उन्होंने जो फैसला लिया है सोच समझ कर ही लिया होगा।
हमें बहुत संयम के साथ इस समय से निकलना है बहुत ही सावधानी बरतनी है। जो भी हो इस माहमारी ने लगता है हमें एक दम ही समझदार बना दिया है। आज हम अपने घरों में बैठे हैं, अब क्यों नही हम फालतू में घूमने जा रहे हैं और यही नही हम आज सफाई का भी बेहद ध्यान रख रहे हैं और हर चीज साफ रहे इस बात को भी सुनिश्चित कर रहे हैं।
मैंने इस महामारी को लेकर बहुत कुछ पढ़ा लेकिन कहीं भी ऐसी कोई बात नहीं आई जिसमें यह कहां गया हो कि कभी भी कोई भी महामारी भारत से शुरू हुई हो। यह बिमारी ज्यादातर पश्चिमी या एशिया, इंडोनेशियां और चाइना से ही शुरू हुई है। भारत का नाम तो बाद में आता है जब बिमारी यहां अन्य देशों से फैल जाती है। यानि कि भारत की संस्कृति है और हिन्दु धर्म जो बहुत महान है बहुत प्रभावशाली है उसी की वजह से शायद हम बचते हैं और जो मंत्र है उनमें इतनी शक्ति होती है कि वे हमें इनका सामना करने की शक्ति देते हैं। मैं सोचती हूं कि भारतीय संस्कृति जिसमें भगवान के प्रति श्रद्धा व मंत्रों के उच्चारण में बहुत शक्ति होती है और जो उसका दिव्य प्रभाव है उसे हमें समझना चाहिए कि प्रकृति हमें इस समय क्या कह रही है और हमें इस परिस्थिति से कैसे बाहर आना है।
हमारी संस्कृति का ही असर है कि आज पूरा विश्व नमस्ते कर रहा है। यकीनन हमारे यहां की संस्कृति पूरी तरह से लाॅजिकल है उसमें इनलाॅजिकल कुछ भी नहीं है। चाहे वो हवन करना हो, नमस्ते करना हो, मंत्रों का उच्चरण करना है प्रत्येक संस्कृति हमें किसी न किसी अच्छी बात से ही जोड़ती है।
पुराने जमानों में जब माना जाता था कि तीर्थ पर जाना है तो अपने जीवनकाल में मनुष्य केवल एक ही बार किसी-किसी तीर्थ पर जाया करता था। पर आज के समय में हम जब मुँह उठाये किसी भी तीर्थ पर चाहे हम कितनी बार भी गये हों, दोबारा चल देते हैं इसमें हम सभी शामिल हैं। चाहे मैं ही क्यूं न हूं। अभी मैं किसी से बात कर रही थी, बड़ा ही अचम्भा हुआ। वे बोल रहे थे कि मैं वेष्णों देवी गई और मैंने एक बार में चार बार दर्शन किया। यह सुनकर मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और मैंने सोचा कि ये क्या बात कर रहे हैं। मैंने कहा कि तुम्हें चार बार दर्शन करने की क्या जरूरत पड़ गयी। तो उन्होंने कहा, कि अरे इतना पैसा खर्च करके वहां गये हैं तो जरूरत क्यों नहीं है। वहाँ पहुँचते ही हमने पहले दर्शन किये, उसके बाद शाम की आरती की, उसके बाद मंगला आरती की और फिर शाम के दर्शन करके हम वहाँ से निकल गये।
उनकी यह बात सुनकर बड़ी ही अजीब सी बात लगी और सोचा कि इतना पढ़ा-लिखा होने के बावजूद भी हम क्यूं इतनी भीड़ को बढ़ाये जा रहे हैं। लोग वहाँ पर इकट्ठे हैं, गंदगी फैला रहे हैं, बुरा हाल मचा हुआ है, एक घुटन सी महसूस होती है। क्या एक बार ही ईश्वर को देखकर और ईश्वर से मिलकर हम प्रसन्न नहीं है ? ईश्वर तो हमारी बात को कहीं भी सुन सकते हैं।
ये माना कि ईश्वर के दर्शन करने के लिये तीर्थ स्थानों पर जाना चाहिये क्योंकि वहाँ पोजिटिव वेवस मिलती है, हमारे मन को अच्छा लगता है। लेकिन, हम उन तीर्थों पर इतना भी कहर न ढहायें कि वहाँ पर खड़े होने की भी जगह न हो, और एक घुटन बन जाये। लोगों ने तीर्थ को तीर्थ न समझकर एक हेंगआउट करने का तरीका बना लिया है।
चीजें बिल्कुल स्थिर हो गईं हैं। पूरे शहर के शहर ऐसा लग रहा है कि खाली हो गये हैं। मानो देखने से ऐसा लग रहा है कि धरती एक ब्रेक चाहती थी, धरती एक रेस्ट मोड पर आ गई है। ताकि जो इनका भार है वो कम हो जाए।
जगह-जगह पर लोग नहीं दिखाई दे रहे हैं, सड़कें खाली पड़ी हैं, जगह खाली पड़ी हैं। अभी मैं कुछ ऐस्ट्रोलोजर को सुन रही थी कि इसमें जो यह दशा आई हैं उसमें राहू, केतू और जुपिटर इन तीनों की ऐसी दशाएं चल रही हैं इसलिये ये महामारी आई हैं। परन्तु जब इन ग्रहों की दशाएं बदलेंगी तो ये महामारी कंट्रोल में आएंगी।
दूसरी चीज़ जो कि मेडिकली रूप से भी हमें अपने आप को जो तैयार करना है, सफाई रखनी है या किस प्रकार से सेनेटाइजर का इस्तेमाल करना है या किस तरह से छींकना है, किस तरह से खाँसना है। ये सारे तरीके अलग हैं।
लेकिन एस्ट्रोलोजिकल वे में देखा जाये क्योंकि सृष्टि के पालनहार जो हैं वे शिव हैं। तो यह कहा जा रहा है कि इस समय पर सभी लोग अगर महामृत्युंजय मंत्र का जप करें तो बहुत बेनेफीसियल होगा, यूनीवर्स में जायेगा और चीजें कंट्रोल में आएंगी। क्योंकि मंत्रों में बहुत ताकत होती है।
सभी लोग घरों में रहे और साफ़ सफाई का ध्यान रखें। हमें इस कोरोना को हराना है