-बी.एल. गौड़
निर्भया काण्ड दिल्ली से लेकर हैदराबाद की डॉक्टर प्रियंका तक लगभग 3 से 4 काण्ड निर्भया की तर्ज पर या उससे भी घृणित और हद दर्जे के नीचे के स्तर के कई काण्ड हो चुके हैं। यों तो होने को हर दिन देश के अलग-अलग शहरों में दस माह की बच्ची से लेकर 70 साल की बुजुर्ग महिला तक बलात्कार के अनेक काण्ड होते हैं और इन्हें अंजाम देने वाले अपने गुण्डई अंदाज में खुले घूमते हैं। अगर पकड़े भी जाते हैं तो निर्भया काण्ड की तजऱ् पर उन्हें बचाने वाले वकील भी मिल जाते हैं। ऐसे वकीलों का धर्म केवल पैसा होता है।
यदि खूब पैसा मिलता रहे तो फाँसी की सजा घोषित किये जाने के बावजूद भी उसको सालों तक लटका सकते हैं और अंत
तक इस कोशिश में लगे रहते हैं कि ऐसे नीच कर्म करने
वालों को कम से कम सजा मिले या फिर वे बेनीफिट ऑफ डाउट छूट जाये।
जब कानून में इतनी लचक हो तो कौन परवाह करेगा ऐसे कानून की। जघन्य अपराध करने वाले सड़क से लेकर संसद तक केवल और केवल मौज करते हैं। कई बार तो जेल के भीतर से ही चुनाव लड़ते हैं और कई बार वे जीत कर अपराधी से माननीय बन जाते हैं।
आज भी निर्भया की माँ मन्दिर जाकर ईश्वर से प्रार्थना करती है कि जिन दरिन्दों ने मेरी बेटी की आत्मा तक का कत्ल कर दिया उन्हें हे ईश्वर फाँसी के फंदे पर तो लटकवा दे। तो उधर जिन्होंने इस काण्ड को अंजाम दिया था, वे अपने वकील से रोज मश्विरा करते हैं कि बाहर कैसे आयें या फिर फाँसी की सजा केवल कुछ सालों में परवर्तित हो जाये। अब फाँसी की सजा तो उन्हें तभी मिलेगी जब भारत के राष्ट्रपति न्यायालय द्वारा पारित की गई फाँसी की सजा को बरकरार रखेंगे।
दिल्ली की निर्भया हो या हैदराबाद की प्रियंका। प्रियंका के साथ तो निर्भया से भी बुरा हुआ। बलात्कार के बाद उसे जला दिया गया। क्या ऐसी घटनाओं को कर गुजऱने वालों को भारत का कानून कोई वाजि़ब सजा दे पायेगा ?
मेरा अपना मानना तो यह है कि इस प्रकार के वीभत्स काण्डों की बढ़ोत्तरी होती रहेगी और वर्तमान न्याय व्यवस्था के अंतर्गत इनमें कोई कमी आने वाली नहीं है। जब निर्भया काण्ड के हत्यारे अभी 7 साल तक जीवित हैं, वहाँ क्या उम्मीद की जा सकती है कि हैदराबाद की प्रियंका के दोषी यदि पकड़े भी गये तो दसियों बरस तो इस बात में लग जायेंगे कि उन्हें कितनी और किस प्रकार की सजा दी जाये।
यदि निर्भया काण्ड के दोषियों को एक या दो माह में ही किसी सार्वजनिक स्थान पर या फिर सरे बाज़ार फाँसी पर लटका दिया गया होता तो दूसरों को भी कुछ सबक मिलता। उनके मन में एक डर बैठता कि इस तरह के काण्ड में गर्दन कितनी लम्बी हो जाती है।
सरकार और विशेषकर ये भारतीय जनता पार्टी की सरकार यदि चाहे तो कानून बदलकर बहुत कुछ कर सकती है। किसी भी ऐसी घटना को हर हालत में प्रतिदिन सुनवाई कर अधिकतम 60 दिन में निपटाया जाये और अपराधियों को जेल के भीतर नहीं बाहर जनता के बीच दिन के उजाले में फाँसी पर लटकाया जाये। तभी समाज में रेंग रहे ऐसे कीड़ों को कुछ शिक्षा मिल सकती है। अन्यथा ऐसे घिनौने काण्ड तो होते ही रहेंगे।
और अंत में प्रियंका काण्ड के दोषियों की माताओं को शत-शत नमन। जिन्होंने कहा है कि हमारे बेटे हैं तो क्या हुआ ? ऐसे नरपिशाचों को कठोर से कठोर सजा दी जाये।