-बी.एल. गौड़
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आदमी लड़े तो कहाँ तक लड़े। बताते हैं कि दिल्ली का प्रदूषण देश में सबसे खतरनाक स्तर पर है। अगर आदमी सिगरेट या बीड़ी नहीं पीता तो भी वह 21 सिगरेट के बराबर धुँआ, धूल और भिन्न-भिन्न प्रकार की दुर्गंध अपनी साँस द्वारा अपने भीतर खींच लेता है। प्रदूषण का यही स्तर यदि केवल दस दिन तक इतना ही बना रहा तो वह आदमी जो मास्क खरीदने की हैसियत नहीं रखता सोचिए उसके फेफड़़ों की हालत क्या होगी, यह अंदाज आप लगा सकते हैं। सरकारी आँकड़ों के हिसाब से 10 दिनों में एक आदमी 21&10 अर्थात् 210 सिगरेट के बराबर जहर पी जाता है। कितना निकोटीन उसके फेफड़ों में गया और कितने बरस उसकी जिंदगी के कम हो गये। सोचिये और केवल सोचिये क्योंकि सिवाय सोचने के आप और कुछ कर भी नहीं सकते।
दिल्ली में तीन राजनैतिक पार्टियां हैं जो अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव में बहुमत प्राप्त करने का और सरकार बनाने का दावा करतीं हैं। इन तीनों पार्टियों ने इस प्रदूषण की एक बॉल बना ली है और बिना किसी नेट और रैफऱी के वे बास्केट बॉल का खेल, खेल रहे हैं। मुद्दे तो सबके बीच समान हैं। जनता जिन मुद्दों से परेशान है उनके लिये ये तीनों पार्टियाँ एक-दूसरे को जिम्मेवार बताती रहती हैं।
समय की अपनी गति है। दिल्ली की सड़कों पर आये दिन तीनों पार्टियों की बारी-बारी से रैलियाँ निकलती हैं। मुख्य मकसद है दिल्ली के वोटर को मूर्ख बनाना और येन केन प्रकारेण उसके वोट को झपटना। उम्मीद पर दुनियाँ कायम है और ये तीनों पार्टियाँ भी इससे अछूती नहीं हैं। दिल्ली में जल्दी ही चुनाव का त्यौहार आने वाला है।
चलो यह तो रही दिल्ली की हवा के प्रदूषण की बात और आइये अब नजऱ डालते हैं कुछ अन्य प्रकार के प्रदूषणों पर:-
देश के उच्चतम न्यायालय का अभी चंद रोज पहले राम मंदिर पर एक ऐतिहासिक फैसला आया। फैसले से पहले दोनों पक्ष (हिन्दू और मुस्लिम) एक ही बात कहते थे कि उच्चतम न्यायालय का जो भी फैसला आयेगा वह हमें मान्य होगा और ऐसा कहने में श्री ओवैसी भी शामिल थे। फैसला आते ही ओवैसी तो छिटक कर ऐसे अलग हो गये जैसे कभी चूसने वाले आम से गुठली छिटक कर अलग निकल जाती है। अब वे कह रहे हैं कि यह फैसला गलत है। हम इसके विरूद्ध अपील करेंगे।
न्यायालय का भी अजीब हाल है। अभी-अभी तो उसने अपना फैसला दिया है लेकिन वह फिर से उस पर रिव्यू करने के लिये तैयार है। जय हो ऐसे संविधान और न्यायालय की। लगता है कल को निर्भया वाले मामले में मुज़रिमों की यदि फाँसी की सजा बरकरार रखी जाती है तो फिर कोई वकील कहेगा कि हम तो मुज़रिमों की तरफ से रिव्यू की अर्जी डालेंगे और फिर से उन मुज़रिमों को दस-पाँच साल का जीवन दान दिला देंगे।
इसके अतिरिक्त तीसरे प्रकार का प्रदूषण देखना हो तो महाराष्ट्र में रोज बनती बिगड़ती सरकार पर एक नजर डाल लीजिये। हरियाणा का मंजर अभी-अभी आपकी नजऱें देख ही चुकी हैं। जिन पार्टियों ने भोले-भाले वोटरों से यह कहकर वोट झटक लिये थे कि हम आपके लिये एक साफ-सुथरी सरकार लायेंगे वे आपस में सिरफुटोबल कर रही हैं। अब दो की जगह चार-पाँच पार्टियां विचार-विमर्श में लीन हैं। जिनके कभी मन और मत नहीं मिलते थे। आज वे बैठकों में एक-दूसरे को चाय के साथ बिस्कुट भी खिला रहे हैं। यह एक अलग तरह का प्रदूषण है।
प्रदूषण हनुमान जी की पूँछ की तरह है जिसका छोर मिलना कठिन ही नहीं, असंभव है। पटवारी से लेकर पार्लियामेंट तक जितने भी गलियारे हैं हर एक के मुहाने पर सिर पर पगड़ी बाँधे मूँछों पर ताव देता प्रदूषण विराजमान है।